15-09-69 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन

“याद के आधार पर यादगार” 

आवाज से परे जाना है वा बाप को भी आवाज में लाना है? आप सब आवाज से परे जा रहे हो। और बापदादा को फिर आवाज में ला रहे हो। आवाज में आते भी अतीन्द्रिय सुख में रह सकते हो तो फिर आवाज से परे रहने की कोशिश क्यों? अगर आवाज से परे निराकार रूप में स्थित हो फिर साकार में आयेंगे तो फिर औरों को भी उस अवस्था में ला सकेंगे। एक सेकेण्ड में निराकार-एक सेकेण्ड में साकार। ऐसी ड्रिल सीखनी है। अभी-अभी निराकारी, अभी- अभी साकारी। जब ऐसी अवस्था हो जायेगी तब साकार रूप में हर एक को निराकार रूप का आपसे साक्षात्कार हो। अपने आप का साक्षात्कार किया है? ब्राह्मण रूप में तो हो ही हो। अगर अपना साक्षात्कार किया है तो क्या अपने नम्बर का साक्षात्कार किया है? और कोई भी आपका रूप है जिसका साक्षात्कार किया है? अपने असली रूप को भूल गए? वर्तमान समय आप किस रूप से युक्तियुक्त सर्विस कर सकते हो? जगतमाता।

आज तो विशेष माताओं का ही प्रोग्राम है ना। रहना माता रूप में ही है सिर्फ जगतमाता बनना है। माता बनने बिना पालना नहीं कर सकते आज माताओं को किसलिए बुलाया है? वर्से के अधिकारी बन चुकी हो कि बनना है? वारिस बन चुकी हो कि बनने आए हो? वारिस से वर्सा तो है ही कि वारिस बनी हो मगर वर्सा नहीं मिला है? वर्से के हकदार तो बन ही चुके हो। अब किस कार्य के लिए आई हो? बापदादा ने जरूर किसी विशेष कार्य के लिए बुलाया होगा? स्टडी तो अपने सेवाकेन्द्रों पर भी करते रहते हो। कोर्स भी पूरा कर चुके हो। मुख्य ज्ञान की पढ़ाई का भी पता पड़ गया है। बाकी क्या रह गया है? अब नष्टोमोहा बनना है। नष्टोमाहा तब बनेंगी जबकि सच्ची स्नेही होंगी। जैसे कोई भी चीज को आग में डालने के बाद उसका रूप-रंग सब बदली हो जाता है। तो जो भी थोड़े आसुरी गुण, लोक-मर्यादायें हैं, कर्मबन्धन की रस्सियां, ममता के धागे जो बंधें हुए हैं उन सबको जलाना है। इस स्नेह की अग्नि में पड़ने से यह सब छूट जायेगा। तो अपना रंग-रूप सब बदलना है। इस लगन की अग्नि में पड़कर परिवर्तन लाने के लिए तैयार हो? जो चीज जल जाती है वो फिर खत्म हो जाती है। देखने में नहीं आती। ऐसे अपने को परिवर्तन में लाने की हिम्मत है? आप सबकी यादगार अब तक भी कायम है। आपकी यादगार का आधार किस बात पर है? जितनी-जितनी याद है उतनी-उतनी सबकी यादगार बनी हुई है। अब तक भी कायम है। आपकी याद के आधार पर सबकी यादगार बनी हुई है। अगर याद कम है तो यादगार भी ऐसा ही होगा। अगर यादगार कायम रखने का प्रयत्न करना है तो पहले याद कायम रखो। फिर उस आधार पर यादगार बनना है। हर एक के विशेष गुण पर हर एक का ध्यान जाना चाहिए। एकएक का जो विशेष गुण है वो हर एक अगर अपने में धारण करे तो क्या बन जायेंगे? सर्वगुण सपन्न। जैसे आत्मा रूप को देखते हो ना। तो फिर जब कर्म में आते हो तो हर एक के विशेष गुण तरफ देखो। तो फिर और बातें भूल जायेंगी। गुणों को ही अपने में भरने का प्रयत्न करना है।

आज माताओं को चंद्रमा का टीका लगाया है। चंद्रमा के जो गुण हैं वो अपने में धारण तो करने ही हैं परन्तु चंद्रमा का सूर्य के साथ सम्बन्ध भी गहरा होता है। तो चंद्रमा जैसा सम्बन्ध और गुण धारण करने हैं। और चंद्रमा का कर्तव्य कौन-सा है? शीतलता के साथ-साथ रोशनी भी देता है। अच्छा अब विदाई।